धूमा स्वास्थ्य केंद्र में फर्जी क्लिनिक का खेल: सरकारी कर्मचारियों ईमला बघेल और नीलम पटेल एलोपैथी क्लीनिक से जनता की जान के साथ खिलवाड़

Posted on

July 2, 2025

by india Khabar 24

 

धूमा, जिला सिवनी, मध्य प्रदेश:
मध्य प्रदेश के सिवनी जिले अंतर्गत आने वाले लखनादौन सिविल अस्पताल के अधीनस्थ धूमा स्वास्थ्य केंद्र में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने पूरे स्वास्थ्य तंत्र की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आरोप है कि यहां सरकारी स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा गुप्त रूप से निजी क्लीनिक का संचालन किया जा रहा है, जहां नियमों को ताक पर रखकर एलोपैथिक इलाज किया जा रहा है, और प्रतिबंधित H1 श्रेणी की दवाइयों का खुल्लमखुल्ला उपयोग हो रहा है।

इस कथित फर्जी क्लिनिक का संचालन कोई आम आदमी नहीं, बल्कि खुद सरकारी सेवा में कार्यरत कर्मचारी द्वारा किया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, क्लीनिक की जिम्मेदारी नीलम पटेल नामक एक महिला के पास है, जो स्वयं को डॉक्टर बताकर मरीजों का इलाज कर रही हैं, जबकि न तो उनके पास मेडिकल काउंसिल की मान्यता प्राप्त MBBS डिग्री है, और न ही किसी प्रकार की पंजीकृत चिकित्सकीय योग्यता।

*कैसे चल रहा है यह फर्जी क्लीनिक*

धूमा कस्बे के थल्ला क्षेत्र में यह कथित क्लीनिक बीते कई वर्षों से संचालन में है। बाहरी तौर पर यह एक साधारण क्लीनिक प्रतीत होता है, लेकिन अंदर जाने पर मरीजों को एलोपैथिक दवाइयाँ दी जाती हैं, और इंजेक्शन तक लगाए जाते हैं। इससे भी चौंकाने वाली बात यह है कि इस क्लीनिक में कई ऐसी H1 कैटेगरी की दवाइयाँ (जिनके लिए विशेष पर्ची और पंजीकरण आवश्यक होता है) का धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा है, जो आमतौर पर सरकारी अस्पतालों में भी नियंत्रित रूप से प्रयोग में लाई जाती हैं।

इन दवाओं में शामिल हैं — सेफट्रिऑक्सोन, डेक्सामेथासोन, क्लोरोफेनिरामाइन, और अन्य एंटीबायोटिक्स व स्टेरॉयड्स, जिनका बिना विशेषज्ञ चिकित्सक की निगरानी में प्रयोग गंभीर दुष्प्रभाव पैदा कर सकता है।

*सरकारी कर्मचारी क्यों हैं संदेह के घेरे में*
इस क्लीनिक की मुख्य संचालिका नीलम पटेल स्वास्थ्य विभाग की एक कर्मचारी हैं, और उनके ऊपर यह आरोप है कि वे शासकीय सेवा में रहते हुए निजी रूप से मरीजों का इलाज कर रही हैं, जो मध्यप्रदेश सिविल सेवा आचरण नियम 1965 का खुला उल्लंघन है। इसके तहत कोई भी शासकीय कर्मचारी निजी व्यवसाय या सेवा में संलग्न नहीं हो सकता।

स्वास्थ्य विभाग के नियमों के अनुसार, किसी भी शासकीय कर्मचारी द्वारा निजी प्रैक्टिस करना प्रतिबंधित है, और यदि वह ऐसा करते पाए जाते हैं तो उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए। लेकिन सवाल यह है कि विभाग ने अब तक इस गंभीर मसले पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं की

*स्थानीय नागरिकों की चिंता*
स्थानीय निवासियों ने कई बार इस विषय पर शिकायत दर्ज करवाई है। लेकिन हर बार उन्हें या तो टालने की कोशिश की गई है, या फिर दबाव में मामला शांत करा दिया गया। क्षेत्रीय नागरिकों की मानें तो, “जब कोई सरकारी कर्मचारी ही कानून का उल्लंघन करेगा तो आम जनता किससे उम्मीद करे?”

ग्रामीणों ने आशंका जताई है कि यह क्लीनिक किसी बड़े हादसे का कारण बन सकती है, क्योंकि बिना अनुभव और योग्य चिकित्सकीय प्रमाण के इलाज किया जाना मरीजों के जीवन के लिए खतरा है। एक स्थानीय बुजुर्ग ने बताया, “मेरे रिश्तेदार को यहां इंजेक्शन लगाने के बाद गंभीर एलर्जी हो गई, बाद में उन्हें नागपुर रेफर करना पड़ा।

*स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी: क्यों नहीं हो रही जांच*
सवाल उठता है कि आखिर स्वास्थ्य विभाग आंख मूंद कर क्यों बैठा है? क्या इस पूरे प्रकरण में विभागीय अधिकारियों की भी मिलीभगत है? अब तक इस फर्जी क्लीनिक के खिलाफ कोई जांच शुरू नहीं की गई है, और न ही कोई मेडिकल इंस्पेक्शन हुआ है।

यह स्थिति स्वास्थ्य तंत्र की असंवेदनशीलता को दर्शाती है, और साथ ही भ्रष्टाचार की ओर इशारा करती है। यदि समय रहते विभाग ने इस पर कार्रवाई नहीं की तो भविष्य में यह और कई निर्दोष लोगों की जान ले सकता है।
*कानूनी दृष्टिकोण से मामला कितना गंभीर*
फर्जी डॉक्टर द्वारा इलाज किया जाना भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 468 (जालसाजी) और 304A (लापरवाही से मृत्यु) जैसे गंभीर अपराधों की श्रेणी में आता है। इसके अलावा, ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 की धारा 18C व 27 के अंतर्गत भी सजा का प्रावधान है, जिसमें बिना लाइसेंस दवा बेचने और उपयोग करने पर 3 से 5 वर्ष की सजा और जुर्माना लगाया जा सकता है।

यदि नीलम पटेल नामक कर्मचारी के पास वैध MBBS डिग्री या राज्य चिकित्सा परिषद में पंजीकरण नहीं है, और वह इलाज कर रही हैं, तो यह साफतौर पर “क्वैकरी” (झोलाछाप चिकित्सा) की श्रेणी में आता है, जो संज्ञेय अपराध है।

*जनहित याचिका और मीडिया की भूमिका*
अब आवश्यकता है कि इस पूरे मामले को उजागर करने के लिए जनहित याचिका (PIL) दायर की जाए, जिससे उच्च न्यायालय या स्वास्थ्य मंत्रालय संज्ञान लेकर जांच शुरू कर सके। साथ ही, मीडिया संस्थानों और पत्रकारों की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण है कि वे ऐसे मामलों को प्राथमिकता से उजागर करें ताकि जिम्मेदार अधिकारियों पर दबाव बनाया जा सके।

*क्या करें स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन?
निष्कर्ष: कब जागेगा तंत्र*
धूमा स्वास्थ्य केंद्र का यह मामला न केवल एक छोटे से कस्बे का स्वास्थ्य संकट है, बल्कि यह पूरे प्रदेश के लिए एक चेतावनी है कि यदि स्वास्थ्य व्यवस्था पर से जनता का भरोसा उठ गया, तो सबसे अधिक नुकसान उन गरीब व वंचित वर्गों को होगा जो सरकारी इलाज पर निर्भर हैं। अब समय आ गया है कि सरकार और प्रशासन इस ओर गंभीरता से ध्यान दे और दोषियों पर सख्त कार्रवाई कर एक मिसाल कायम करे।

यदि आज यह मामला अनदेखा किया गया, तो कल किसी बड़े हादसे की जिम्मेदारी किसकी होगी?

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July 2, 2025

by india Khabar 24

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