
गोटेगाव मध्यप्रदेश
परमहंसी गंगा आश्रम में चल रहे गीता प्रवचन सत्संग में शुक्रवार को दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती ने कहा कि ज्ञान किसे नहीं अर्थात सबको है पर प्रत्येक व्यक्ति में उपलब्ध ज्ञान के आधार पर अपना मार्ग सुनिश्चित करने की दृष्टि नहीं है। गीता का ज्ञान इसी कमी को पूरा करता है और हमे एक सुनिश्चित दृष्टि देता है।
गोटेगांव परमहंसी गंगा आश्रम में चल रहे गीता प्रवचन सत्संग में शुक्रवार को दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती ने कहा कि ज्ञान किसे नहीं अर्थात सबको है पर प्रत्येक व्यक्ति में उपलब्ध ज्ञान के आधार पर अपना मार्ग सुनिश्चित करने की दृष्टि नहीं है। गीता का ज्ञान इसी कमी को पूरा करता है और हमे एक सुनिश्चित दृष्टि देता है। कभी-कभी अपने मार्ग को सुनिश्चित करने के लिए अपने से और अपनो से लड़ना पड़ता है। दंडी स्वामी ने उदाहरण देते हुए कहा कि हम पाप करते हैं और फिर उन्हीं पापों का नाश करने के लिए गंगा स्थान, तीर्थ यात्रा, व्रत उपवास आदि करने पड़ते हैं। अपने शरीर में उत्पन्ना रोगों को मारने के लिए दवा लेनी पड़ती है। इसी तरह कभी-कभी न्याय, धर्म की रक्षा, अधिकारों की रक्षा के लिए अपनों से भी लड़ना पड़ता है।पांडवों को ऐसी ही परिस्थिति में महाभारत का युद्ध लड़ना पड़ा था। अपने ही के सामने खड़े होकर युद्ध करना कोई साधारण कार्य नहीं है। स्वाभाविक है कि ऐसी परिस्थिति में बुद्धि निश्चय नहीं कर पाती अपने कर्तव्य का। ऐसे धर्म संकटों के आने पर गीता में हमारा कर्तव्य निश्चित करने में सहायता करती है। जैसे अर्जुन के मन में संशय को मिटाकर युद्ध के लिए तत्पर कर दिया था।
सृष्टि विषयक ज्ञान की आवश्यकताःदंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि आदि गुरु नारायण ने अपना प्रथम शिष्य ब्रह्मा को बनाया जिन्हें सृष्टि की रचना करने के लिए सृष्टि विषयक ज्ञान की परम आवश्यकता थी। किसी छोटी सीधी रचना का मूर्त रूप देने के लिए उस वस्तु की रचना का ज्ञान आवश्यक है। सृष्टि की रचना बिना सृष्टि ज्ञान के संभव नहीं था। ऐसे में भगवान नारायण ने उन्हें पूर्व कल्प की सृष्टि का स्मरण कराया। अपना लोक दिखाया जो कि सर्वश्रेष्ठ निर्माण था और जिसमें भय, क्लेश और अज्ञान का प्रवेश भी नहीं था। ब्रह्माजी ने उसी प्राप्त ज्ञान से सृष्टि की रचना की। उन्होंने भगवान से वरदान मांगा कि मुझे ऐसा ज्ञान दीजिए सृष्टि के निर्माण का हमें अभिमान न हो तब भगवान ने उन्हें तत्व ज्ञान प्रदान किया।सत्संग में ब्रह्मचारी ब्रह्म विद्यानंद,ब्रह्मचारी निर्विकल्प स्वरूप ने भी उपदेश दिए। आचार्य राजेंद्र शास्त्री ने कहा कि सेवक को स्वामी के पास विनम्र होकर जाना चाहिए। स्वामी के सामने सेवक का अभिमान नहीं चलता। स्वामी के नाम से वह सर्वत्र अभिमान से रह सकता है पर स्वामी के सामने भी अगर वह अभिमान करेगा तो उसका अभिमान टिकेगा नहीं। उन्होंने इस कथन के समर्थन में महाभारत का यह प्रसंग सुनाया जिसमें अर्जुन और दुर्योधन दोनों श्री कृष्ण के पास महाभारत के युद्ध में सहयोग मांगने गए थे।सत्संग के पूर्व मंगलाचरण ऋतुराज पंडित ने किया। स्वागत दीपक भार्गव ने किया।भजन दशरथ यादव ने गाया।सनी पटेल ने दंडीस्वामी द्वय का माल्यार्पण किया।संचालन आचार्य राजेंद्र प्रसाद द्विवेदी ने किया।प्रवचन से पूर्व गोटेगांव की प्रतिभा शांभवी नेमा ने भजनों की प्रस्तुति दी।