
भोपाल मध्यप्रदेश
भोपाल, भगवान शिव का प्रिय सावन महीना गुरुवार से शुरू हो गया। सावन महीने का पहला सोमवार 18 जुलाई को आएगा। इस दिन शोभन, प्रीति व सर्वार्थ सिद्धि योग में भगवान भोलेनाथ का अभिषेक किया जाएगा। हिंदू पंचांग का पांचवां महीना सावन भगवान शिव की आराधना का महीना है।
पं. रामजीवन दुबे ने बताया कि सावन महीने की 14 जुलाई से लेकर आगामी 117 दिन यानी 8 नवंबर 2022 (कार्तिक पूर्णिमा) तक 75 दिन बड़े व्रत और उत्सव के होंगे। 11 अगस्त रक्षाबंधन को श्रावण मास समाप्त हो जाएगा। सावन का पहला सोमवार 18 जुलाई को रहेगा। पहले सोमवार को शोभन, प्रीति व सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। दूसरा सोमवार 25 जुलाई, तीसरा सोमवार एक अगस्त और चौथा सोमवार आठ अगस्त को होगा। साथ ही सावन मास की शिवरात्रि 26 जुलाई को मनाई जाएगी। गुरुजी ने बताया कि शिवपुराण के अनुसार सावन महीना महीना श्रवण करने यानी सुनने का है, इसलिए इसका नाम श्रावण है। इस महीने में धार्मिक कथाएं और प्रवचन सुनने की परंपरा है। सावन बदलाव का महीना भी है। ज्येष्ठ और आषाढ़ की गर्मी के बाद बारिश शुरू हो रही है। आयुर्वेद में सावन को योग-ध्यान का महीना कहा गया है।
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शिवजी को समर्पित मास है श्रावण
सावन में अन्य देवी-देवताओं की अपेक्षा शिव जी की पूजा सबसे अधिक की जाती है। ये पूरा महीना ही शिव जी को समर्पित है। ऐसा कहते हैं कि सावन महीने में ही देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को पति रूप में पाने के लिए तपस्या शुरू की थी। तप से प्रसन्न होकर शिव जी प्रकट हुए और देवी की इच्छा पूरी करने का वरदान दिया। सावन महीना शिव जी को प्रिय होने की दो खास वजहें हैं। पहली, इसी महीने से देवी पार्वती ने शिव जी को पति रूप में पाने के लिए तप शुरू किया था। दूसरी, देवी सती के जाने के बाद शिव जी को फिर से अपनी शक्ति यानी देवी पार्वती पत्नी के रूप में वापस मिली थीं।
सावन में शिव पूजा जल्द होती है सफल
शिवपुराण की विद्येश्वर संहिता के अध्याय 16 में शिव जी कहते हैं कि मासों में श्रावण (सावन) मुझे बहुत प्रिय है। इस महीने में श्रवण नक्षत्र वाली पूर्णिमा रहती है। इस वजह से भी माह को श्रावण कहते हैं। सावन महीने में सूर्य अधिकतर समय कर्क राशि में रहता है। जब सूर्य कर्क राशि में होता है, उस समय में की गई शिव पूजा जल्दी सफल होती है।
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शिवलिंग पर ठंडे जल की धारा से अभिषेक
शिवजी पर ठंडे जल की धारा की परंपरा के पीछे समुद्र मंथन की कथा है। जब देवताओं और दानवों ने समुद्र को मथा तो सबसे पहले हलाहल विष निकला, जिसे शिव जी ने पी लिया था। इस विष को भगवान ने गले में धारण किया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया। विष की वजह शिव जी के शरीर में गर्मी बहुत बढ़ गई थी। इस गर्मी को शांत करने के लिए शिवलिंग पर ठंडे जल की धारा चढ़ाने की परंपरा है।